इस आर्टिकल में कूलिंग टावर के प्रकार (Types of Cooling Tower Hindi) का विस्तृत वर्णन है। इसके आलावा कूलिंग टावर की कार्यपद्धति, कूलिंग टावर के भाग एवं कूलिंग टावर के पानी के पैरामीटर कोनसे है ? और इसकी वैल्यू कितनी होनी चाहिए ? कूलिंग टावर के पानी के लोसिस ? ऐसे कही सवालों के जवाब मिलेंगे।
What is Cooling Tower ? कूलिंग टावर क्या है ?
पानी को कूलिंग करने प्रक्रिया के लिए जो रचना बनायी जाती है उसे कूलिंग टावर कहते है। यह एक औद्योगिक उपकरण है। इंडस्ट्रीज में पानी गरम होने के बहुत सरे कारन है । जैसे की केमिकल का रिएक्शन, जनरेटर और कही मशीनरी होती है। इसमें पानी गरम हो जाता है। इसे ठंडा करके उपयोग में लेने के लिए कूलिंग टावर का इस्तेमाल होता है।
Cooling Tower वाष्पीभवन के सिद्धांत पे कार्य करता है। ये एक नैचरल प्रक्रिया है। पानी ठंडा करने का दूसरा किसी भी ऑप्शन से यह सिस्टम बहुत ही कारगर और सस्ती है। इसमें पानी हवा के साथ संपर्क में आता है। पानी का एरिया बढ़ता है और गरम पानी ठंडा होता है।
कूलिंग टावर अलग – अलग प्रकार के होते है। पर उसका मुख्य काम पानी को ठंडा करने का होता है।
Types of Cooling Tower – कूलिंग टावर के प्रकार
एयर ड्राफ्ट के आधार पर कूलिंग टावर के प्रकार
A – नेचुरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर
नेचरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर में एयर का फ्लो अपने आप नेचरली फ्लो करेगा। याने जो एयर पानी को ठंडा करने की लिए उपयुक्त है वो किसी भी प्रकार के फाॅर्स से प्रदान नहीं होती।
वातावरण में जो हवा का प्रेशर है उसी से पानी को ठंडा करने की प्रक्रिया होती है। इसीलिए इसको नेचरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर कहते है।
नैचरल कूलिंग टावर की ऊंचाई जितनी ज्यादा होगी इतना अच्छा आउटपुट मिलेगा। इसकी ऊंचाई 200 मीटर तक रहती है।
हम जानते है की हवा का प्रेशर जमीन से जिनते ऊपर जायेंगे इतना कम होगा। और हवा ज्यादा प्रेशर से कम प्रेशर की तरफ गति करेगी। इसी सिद्धांत पे ये कूलिंग टावर काम करता है।
निचे से हवा का प्रवेश होगा। बीचमे फिन्स होगी और ऊपर से गरम पानी फिन्स के ऊपर गिरेगा। यह हवा के संपर्क में आयेगा और पानी ठंडा होगा।
B – मैकेनिकल फोर्स ड्राफ्ट कूलिंग टावर
इस प्रकार के कूलिंग टावर में एयर का प्रेशर फोर्स से बनाया जाता है। इसके लिए मोटर और फैन का उपयोग किया जाता है।
फोर्स ड्राफ्ट कूलिंग टावर में फैन फिन्स के निचे के हिस्से में लगाया जाता है। ये फैन फोर्स के साथ बहार की ठंडी हवा को कूलिंग टावर के अंदर ऊपर की तरफ भेजता है।
यह एयर ऊपर से आने वाला गरम पानी के संपर्क में आती है। फिन्स के अंदर एयर और पानी का संपर्क ज्यादा समय तक रहता है। इसके कारण गरम पानी ठंडा होता है।
C – मैकेनिकल इन्दुस ड्राफ्ट कूलिंग टावर
इन्दुस ड्राफ्ट कूलिंग टावर का प्रकार है। आपतोर पर इंडस्ट्रीज में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला यह कूलिंग टावर है।
फोर्स ड्राफ्ट में हवा को प्रेशर से दिया जाता है। इन्दुस ड्राफ्ट में हवा को अंदर से बहार खींचा जाता है।
इस प्रकार के कूलिंग टावर में भी फैन और मोटर का इस्तेमाल होता है। इसमें फैन कूलिंग टावर की ऊपर की साइड लगाया जाता है। यह फैन कूलिंग टावर के अंदर से हवा बहार खींचता है।
मैकेनिकल इन्दुस ड्राफ्ट कूलिंग टावर में फोर्स ड्राफ्ट के लिए फैन नहीं होता। फिन्स के निचे के हिस्से में मेश (जाली) होती है। इसी जाली से हवा अंदर आती है। और इन्दुस ड्राफ्ट के द्वारा गरम पानी के संपर्क के बाद बहार निकलती है।
D – हाइब्रिड ड्राफ्ट कूलिंग टावर
फिन्स के ऊपर और निचे दोनों तरफ से एयर दिया जाता है। निचे से ऊपर आने वाली एयर गीली हो जाती है। ऊपर से सुकि हवा प्रदान की जाती है।
- इस प्रकार के कूलिंग टावर में पानी की बचत अच्छी होती है।
- कार्यक्षमता अच्छी होती है। कोस्ट भी कम रहता है।
- मुख्य लाभ है की इसमें Plum विजिबिलिटी कम रहती है।
- हाइब्रिड ड्राफ्ट कूलिंग टावर रहैसी जगह पर एवं एयर पोर्ट जैसी जगह पे इस्तेमाल होता है।
एयर फ्लो के आधार पर कूलिंग टावर के प्रकार
A – काउंटर फ्लो कूलिंग टावर
एयर फ्लो के आधार पर कूलिंग टावर का एक प्रकार है। पानी के ऑपोसिट में एयर का फ्लो जाता हो ऐसे कूलिंग टावर को काउंटर फ्लो कूलिंग टावर कहता है।
B – क्रॉस फ्लो कूलिंग टावर
इस प्रकार के कूलिंग टावर में एयर का फ्लो क्रॉस में जाता है। याने पानी ऊपर से निचे की तरफ गिरता है। उसके क्रॉस में हॉरिजॉन्टल में एयर का प्रवाह दिया जाता है। इसीलिए इसे क्रॉस फ्लो कूलिंग टावर कहते है।
कूलिंग टावर की कार्यपद्धति
कूलिंग टावर का उपयोग पानी को ठंडा करने के लिए किया जाता है। इंडस्ट्रीज में बहुत सारी प्रणांली ऐसी होती है जिससे तापमान बढ़ता है। ऐसे तापमान को कण्ट्रोल भी करना पड़ता है और कम भी करना पड़ता है।
तापमान को कम करने की एक कार्य प्रणाली के रूप में पानी का इस्तेमाल होता है। जहा आग लगी हो वहा फायर फाइटिंग के तोर पे तो हम पानी का इस्तेमाल करते है। यहाँ हमें पहले से पता है की हमें प्रोसेस की मशीनरी का तापमान कम करना है।
कूलिंग टावर में कंडेन्सर से आया हुआ गरम पानी इनलेट में दिया जाता है। ये पानी कूलिंग टावर में ऊपर की तरफ हैडर में जाता है।
हैडर में नोज़ल लगायी रहती है। इस नोज़ल के द्वारा पानी को निचे छिड़का जाता है। पानी को इस तरह छिड़कने से उसका सरफेस एरिया बढ़ जाता है।
नोज़ल से निकला पानी फिन्स के ऊपर गिरता है। फिन्स बहुत ही छोटे छिद्र वाली जाली होती है।
कूलिंग टावर में सबसे ऊपर फैन होता है। यह अंदर से हवा खिचके बहार की तरफ छोड़ता है।
यहाँ पानी का संपर्क इन्दुस ड्राफ्ट द्वारा एयर से होता है। एयर के संपर्क से पानी का तापमान कम होता है। पानी ठंडा होता है।
निचे गिरा हुआ ठंडा पानी सम्प में जाता है और सम्प पानी कंडेन्सर में जाता है। यह साइकिल चलती रहती है।
कूलिंग टावर के भाग – Parts of Cooling Tower
1 – फैन मोटर
कूलिंग टावर में फैन मोटर सबसे ऊपर के हिस्से में होती है। यह मोटर से फैन घूमता है। कूलिंग टावर की कैपेसिटी के अनुशार फैन मोटर की कैपेसिटी होती है।
2 – फैन
फैन मोटर के साथ कनेक्ट होता है। यह फैन इन्दुस ड्राफ्ट टाइप का फैन होता है। इसका काम हवा को खींचने का है। कूलिंग टावर के अंदर से हवा को खिचके ऊपर की तरफ बहार निकाला जाता है।
3 – एलिमिनेटर
फैन बहार की हवा को निचे से खींचता है। निचे पानी रहता है इस हवा के साथ पानी बहार न जाये इसीलिए फैन के बाद एलिमिनेटर लगाते है। यह हवा को बहार भेजता है और पानी को रोकने का काम करता है।
4 – हैडर – Header
हैडर में गरम पानी को पंप से लाया जाता है। हैडर के साथ नोज़ल कनेक्ट होती है। नोज़ल से यह पानी फुवारा की तरह निचे गिराया जाता है।
5 – Nozzle/Sprinkler
स्पिंकलर हैडर की नोज़ल के साथ कनेक्ट होते है। स्प्रिंकलर का काम पानी को छिड़कना है। पानी को स्प्रे करना है। पानी का स्प्रे करने से उसका सरफेस एरिया बढ़ जाता है। जिसे ठंडा होने में मदद मिलती है।
6 – PVC Fillings
PVC फिल्लिंग्स स्प्रिंकलर के निचे लगायी जाती है। इसकी फिन्स स्प्रिंकलर से निकला हुआ पानी को डायरेक्ट निचे गिरने नहीं देती। पानी यहाँ रुक जाता है, स्लो हो जाता है। ऊपर से फैन हवा खींचता है। यह जगह है जहा पानी ज्यादा से ज्यादा हवा के संपर्क में आता है। जिसके कारण पानी ज्यादा ठंडा होता है।
7 – Mesh
मेष का मीनिंग है जाल। यह एक जाली ही होती है। इसके का काम है की हवा साथ कोई कचरा अंदर न आने दे। फैन ऊपर से हवा खींचता है ऐसे में कचरा आने का चांस बढ़ जाता है। हवा भी पसार हो और कचरा अंदर न आये इसीलिए मेश याने जाली लगायी जाती है।
8 – ग्लोब वाल्व – Glob Valve
ग्लोब वाल्व कूलिंग टावर सम्प में पानी के लेवल को मेन्टेन करता है। इसके लिए मेक उप वाटर होता है। सतत चलने के कारन कुछ पानी का लॉस होता है और कुछ Evaporation के कारण कम होता है। ऐसे में लेवल को बनाके रखना जरुरी है। यह काम ग्लोब वाल्व करता है।
9 – ओवर फ्लो लाइन
इन केस कभी ग्लोब वाल्व ख़राब हो जाये तो सम्प ओवर फ्लो हो सकता है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए एक ओवर फ्लो लाइन दिया जाता है। इस लाइन से पानी ड्रेन में चला जाता है। जिसे पानी का waste नहीं होता।
10 – ड्रेन वाल्व
कूलिंग टावर हमेशा चलने वाला उपकरण है। पानी भी सम्प के अंदर हमेशा रहता है। इसे कभी कभी साफ करने की जरुरत पड़ती है। इस ड्रेन वाल्व से पुराना पानी निकाल कर साफ किया जाता है।
11 – कूलिंग टावर इन लेट
प्लांट के कंडेंसर से आया हुआ पानी कूलिंग टावर इनलेट में दिया जाता है। ये पानी का तापमान ज्यादा होता है। कूलिंग टावर से इसी पानी को ठंडा किया जाता है।
12 – कूलिंग टावर आउट लेट
कूलिंग टावर में जो पानी ठंडा होता है वो आउट लेट से निकाला जाता है। प्रोडक्शन में प्रोसेस की कही ऐसी प्रक्रिया होती है। जिसमे केमिकल रिएक्शन के दौरान तापमान बढ़ता है। ऐसे तापमान को कण्ट्रोल करने के लिए कूलिंग टावर से ठंडा पानी जाता है।
13 – ब्लीड वाल्व
ब्लीड वाल्व का काम बहुत महत्व का है। कूलिंग टावर के पानी में कुछ मिनरल्स होते है। Evaporation के दौरान मिनरल सम्प में इकठ्ठा हो जाता है। धीरे धीरे मिनरल सम्प में बढ़ते जाता है और जमा हो जाते है। यहाँ से कंडेंसर की ट्यूब में भी चला जाता है।
कही बार कंडेंसर की ट्यूब को जाम कर देती है। कंडेंसर ब्लॉक होने के कारन प्लांट की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इसे रोकने के लिए ब्लीड वाल्व दिया जाता है।
कूलिंग टावर में होने वाले लोसिस – Loses of Cooling Tower Water
1 – Evaporation loss
कूलिंग टावर में गरम पानी नोज़ल से फिन्स की ऊपर गिरता है। यह पानी गरम होने के कारण कुछ Evaporate (बाष्प) भी बनता है। ऊपर इन्दुस ड्राफ्ट फैन हवा को खींचता है।
हवा के साथ पानी की बाष्प भी बहार निकलती है। याने दूसरे शब्दों में कहे तो पानी भी बहार निकलता है। यह पानी कूलिंग टावर से कम होता है। बाष्प के कारण होने वाली पानी की कमी के कारण इसे Evaporation loss कहते है।
2 – Drift Loss
इन्दुस ड्राफ्ट हवा को बहार की तरफ खींचता है। कूलिंग टावर में निचे से ENTER हुई हवा फैन के द्वारा ऊपर की साइड निकलती है।
इस हवा के साथ वॉटर पार्टिकल भी बहार निकलते है। इसके कारण कूलिंग टावर में पानी कम होता है। पपानी की इस कमी को ड्रिफ्ट लॉस और विन्डेज लॉस कहते है।
3 – Blowdown Loss
कूलिंग टावर में पानी का Evaporation ( बाष्प ) होता है। ये शुद्ध पानी का बाष्प बनता है। पानी में और भी पार्टिकल्स और मिनरल्स रहते है। यह एक तरह से अशुद्धि है। यह अशुद्धि और मिनरल बचे हुए पानी में मिल जाते है।
यह मिनरल वाला पानी यदि कंडेन्सर में जाये तो उसे जाम कर देता है। ख़राब कर देता है। कंडेन्सर खराब न हो इसीलिए मिनरल वाले पानी को बहार निकाल दिया जाता है।
कूलिंग टावर में ब्लीड वाल्व रहता है। यह वाल्व से अशुद्ध पानी बहार निकाला जाता है। जैसे हम मिनरल वाला पानी निकालेंगे वैसे सम्प में पानी का लेवल कम होगा।यहाँ लेवल मेन्टेन करने के लिए मेक उप वाटर से पानी ऐड करना पड़ेगा।
पानी के इस प्रकार के लॉस को blow down loss कहते है
कूलिंग टावर का उपयोग क्यों किया जाता है ?
कूलिंग टावर का उपयोग ज्यादातर औद्योगिक क्षेत्र में होता है। जहा बड़ी बड़ी इंडस्ट्रीज होती है इसमें कूलिंग टावर लगाना जरुरी हो जाता है।
औद्योगिक एकमो में बहुत सारी प्रोसेस चलती रहती है। इसमें कही रिएक्शन होते है। और गरमी उत्पन्न होती है। यह गरमी को कण्ट्रोल करने के लिए कूलिंग टावर का इस्तेमाल होता है।
कंडेन्सर से कूलिंग वाटर में गरम पानी इन किया जाता है। यह पानी ठंडा होके कंडेन्सर में वापस जाता है।
गरम पानी को ठंडा करने के लिए कूलिंग टावर का इस्तेमाल होता है।
कूलिंग टावर के पानी के पैरामीटर कोनसे है ?
PH, Hardness,(TDS)Total Alkalinity, Total Suspended solid, (TSS)Oxidation Reduction Potential (ORP)
- कूलिंग टावर के पानी की PH वैल्यू 7.5 से 9.0 तक होनी चाहिए।
- कूलिंग टावर के पानी की हार्डनेस 900 PPM से कम होनी चाहिए।
- टोटल सस्पेंडेड सॉलिड ( TSS ) 10 mg/ltr. होना चाहिए।
- टोटल अल्कलिनिटी 300 mg / ltr. होनी चाहिए।
- ऑक्सीडेशन रिडक्शन पोटेंशिअल (ORP) 300 MV होनी चाहिए।
- टीडीएस टोटल डिसॉल्वे सॉलिड 3800 पीपीएम के कम होना चाहिए।
- पानी की कंडक्टिविटी 4000 से कम होनी चाहिए।
What is Boiler In Hindi – बॉयलर क्या है ?